Polygraph Test “पॉलीग्राफ टेस्ट: क्या सचमुच पकड़ सकता है झूठ?”

पॉलीग्राफ टेस्ट (Polygraph Test)

जिसे आमतौर पर “लाई डिटेक्टर टेस्ट” के नाम से जाना जाता है, एक ऐसा टेस्ट है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति की सच्चाई और झूठ को परखने के लिए किया जाता है। इस टेस्ट के दौरान, व्यक्ति के शरीर में होने वाले शारीरिक परिवर्तन जैसे कि हृदय गति, रक्तचाप, श्वास की दर और पसीना मापा जाता है। यह सभी परिवर्तन उस वक्त पर होते हैं जब व्यक्ति कोई सवाल का जवाब देता है।

हालांकि, पॉलीग्राफ टेस्ट को पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं माना जाता। यह वैज्ञानिक आधार पर यह तय नहीं कर सकता कि कोई व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ, बल्कि यह केवल उस व्यक्ति की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापता है। अगर कोई व्यक्ति तनावग्रस्त है या डरता है, तो उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाएँ वैसे ही बदल सकती हैं जैसे कि वह झूठ बोल रहा हो, भले ही वह सच कह रहा हो।

कई देशों में पॉलीग्राफ टेस्ट का उपयोग अपराधियों की पूछताछ में किया जाता है, लेकिन इसे अदालत में सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जाता। इसका कारण यह है कि टेस्ट के परिणाम पूरी तरह से सटीक नहीं होते, और कुछ लोग इसको धोखा देने में भी सक्षम हो सकते हैं।

कुल मिलाकर, पॉलीग्राफ टेस्ट एक दिलचस्प लेकिन विवादित उपकरण है। यह सच्चाई की खोज के लिए एक माध्यम हो सकता है, लेकिन इस पर पूरी तरह से निर्भर नहीं किया जा सकता। इसे केवल एक सहायक उपकरण के रूप में देखा जाना चाहिए, न कि अंतिम निर्णय का आधार।

पॉलीग्राफ टेस्ट(Polygraph Test) की प्रक्रिया सरल और चरणबद्ध होती है। यहां बताया गया है कि यह टेस्ट कैसे किया जाता है:

तैयारी: टेस्ट से पहले, व्यक्ति को टेस्ट के बारे में जानकारी दी जाती है और उसकी सहमति ली जाती है। व्यक्ति को एक आरामदायक स्थिति में बैठाया जाता है, और उसे बताया जाता है कि उसके शरीर की शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापा जाएगा।

सेंसर लगाना: टेस्ट के दौरान, व्यक्ति के शरीर पर विभिन्न सेंसर लगाए जाते हैं। ये सेंसर हृदय गति, रक्तचाप, श्वास दर, और त्वचा में पसीने का स्तर मापते हैं।

प्रश्न पूछना: टेस्ट करने वाला व्यक्ति (पॉलीग्राफ परीक्षक) कुछ सवाल पूछता है। ये सवाल साधारण और गैर-साधारण दोनों हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, “क्या आपका नाम __ है? जैसे साधारण सवालों से शुरू किया जाता है, और फिर मुख्य मुद्दे से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं।
प्रतिक्रिया मापना: जब व्यक्ति सवालों का जवाब देता है, तो सेंसर उसकी शारीरिक प्रतिक्रियाओं को मापते हैं। अगर व्यक्ति सच बोल रहा होता है, तो उसकी प्रतिक्रियाएं स्थिर रहती हैं, लेकिन अगर वह झूठ बोल रहा होता है, तो प्रतिक्रियाओं में बदलाव देखा जा सकता है।

डाटा विश्लेषण: सभी प्रतिक्रियाओं को रिकॉर्ड किया जाता है और बाद में पॉलीग्राफ परीक्षक द्वारा विश्लेषण किया जाता है। वह यह देखता है कि किस सवाल पर व्यक्ति की प्रतिक्रियाओं में बदलाव आया।

निष्कर्ष निकालना: डेटा के आधार पर, परीक्षक यह निष्कर्ष निकालने की कोशिश करता है कि व्यक्ति सच बोल रहा है या झूठ। हालांकि, यह निष्कर्ष हमेशा सटीक नहीं होता और इसे अंतिम सत्य नहीं माना जा सकता।

इस पूरी प्रक्रिया में करीब 1-2 घंटे लग सकते हैं। ध्यान रखें कि पॉलीग्राफ टेस्ट का उद्देश्य केवल शारीरिक प्रतिक्रियाओं के आधार पर संभावित सच्चाई या झूठ का पता लगाना है, यह एकदम निश्चित परिणाम नहीं देता।

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